बजट 2023 -इनकम टैक्स में कोई राहत मिलने की उम्मीद नहीं

आगामी बजट में सरकार की तरफ से इनकम टैक्स में कोई राहत मिलने की उम्मीद नहीं है। जानकारों के मुताबिक आगामी वित्त वर्ष में सरकार की खाद और खाद्य सब्सिडी चालू वित्त वर्ष के मुकाबले कम रहेगी, जिससे सब्सिडी प्रबंधन में मदद मिलेगी।

बजट 2023 -इनकम टैक्स में कोई राहत मिलने की उम्मीद नहीं
budget 2023 date

 कैसा हो आगामी बजट 2023 ?

मोदी सरकार के रिकार्ड को देखते हुए यही लगता है कि बजट में राजनीति पर अर्थनीति को ही वरीयता मिलेगी। समय की मांग भी यहीं है

अगले महीने देश का आम बजट 2023 पेश होने जा रहा है। यूं तो बजट को संतुलन साधने की ही कहा जाता है, लेकिन इस बार सरकार के समक्ष यह चुनौती और बड़ी होने जा रही है। जहां वैश्विक अस्थिरता से अर्थव्यवस्था की सेहत पर असर पड़ रहा है, वहीं अगले साल सरकार को चुनावी परीक्षा में भी उतरना है। ऐसे में बजट में कुछ ऐसी लचीली रणनीति अपनानी होगी, जिसमें राजकोषीय तस्वीर भी न बिगड़े और सरकार की कल्याणकारी योजनाओं की निरंतर गति मिलती रहे। इसमें कोई संदेह नहीं कि वैश्विक परिस्थितियों ने इस समय तमाम गणित बिगाड़ दिए हैं। रूस- युक्रेन युद्ध से कई देशों में महंगाई बेलगाम हो गई है। इससे मांग पर असर पड़ा है और वैश्विक मंदी की आशंका गहराने लगी है। इसे लेकर भी कुछ नहीं कहा जा सकता कि इन आकार लेती परिस्थितियों से निपटने के लिए पश्चिमी देशों के केंद्रीय बैंक किस रणनीति का अनुसरण करते हैं। वहीं कोविड को लेकर नई आशंकाओं ने भी चिंता बढ़ाई है। इन पहलुओं को देखते हुए हमारे आर्थिक नीति-नियंताओं को बजट को अंतिम रूप देते समय बहुत मशक्कत करनी होगी। वैश्विक रुझान इसलिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दरें बढ़ाने का असर पूरी दुनिया पर पड़ा है। भारत में भी रिजर्व बैंक ने मई से जो दरें बढ़ानी शुरू की हैं, उसका असर अगले वित्त वर्ष की वृद्धि पर देखने को मिल सकता है। चालू वित्त वर्ष में जीडीपी की नामिनल वृद्धि 15 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो अगले वित्त वर्ष में घटकर 10.5 प्रतिशत से 11 प्रतिशत के दायरे में रह सकती है। इसका अर्थ होगा कि राजस्व वृद्धि में भी कुछ सुस्ती आएगी, जिससे खुले हाथ से खर्च के लिए गुंजाइश भी घट जाएगी।

इसलिए सरकार को सोच-समझकर कदम आगे बढ़ाने होंगे। सरकार आवश्यक खर्चों और सब्सिडी से मुंह नहीं फेर सकती। असल में संवेदनशील वर्गों के लिए ऐसा संरक्षण आवश्यक है। इसीलिए सरकार खाद्य सब्सिडी पर खर्च को निरंतर जारी रखे हुए है। जहां तक उर्वरक और ईंधन सब्सिडी का प्रश्न है तो यह अंतरराष्ट्रीय कारकों पर निर्भर करेगा। हाल फिलहाल इनकी अंतरराष्ट्रीय कीमतों में अपने चरम से कुछ नरमी आई है, जो सरकार के लिए राहत की बात है, लेकिन यदि यह रुझान बदला तो सरकार का हिसाब बिगड़ेगा।ऐसे में, यही संभावना अधिक है कि बजट में सरकार इन सब्सिडी को लेकर यथास्थिति कायम रखेगी।

बजट में सरकार की सबसे बड़ी प्राथमिकता ऐसे परिवेश को प्रोत्साहन देने की होनी चाहिए, जिसमें उपभोग के कवायद बजाय निवेश और क्षमता निर्माण को गति मिले। यदि उपभोग पर अधिक ध्यान केंद्रित हुआ तो महंगाई के विरुद्ध रिजर्व बैंक की मुहिम निस्तेज पड़ेगी। यह मोर्चा इसलिए भी मुश्किल है, क्योंकि वैश्विक मांग सुस्त होने की स्थिति में घरेलू मांग का ही अधिक सहारा रह जाता है। ऐसे में सरकार को ऐसे प्रयास करने होंगे कि महंगाई पर दबाव बढ़ाए बिना ही इस राह पर गाड़ी आगे बढ़ जाए। करदाताओं की ओर से करों में राहत दिए जाने का दबाव होगा, पर इसके लिए भी सरकार के पास गुंजाइश नहीं है। इसके बजाय सरकार को क्षमता विस्तार से जुड़े निवेश पर फोकस करना होगा। इसके अलावा उत्पादन आधारित प्रोत्साहन यानी पीएलआइ जैसी योजनाओं का दायरा बढ़ाना होगा।जलवायु परिवर्तन इस समय की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। इसके चलते प्रतिकूल मौसम परिस्थितियां फसल चौपटकरने से लेकर सामान्य गतिविधियों को प्रभावित कर उत्पादकता को घटाती हैं।यह बिल्कुल सही समय है कि सरकार इस ओर ध्यान दे। बड़ी कंपनियों के पास तो हरित तकनीक की ओर कूच करने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं, लेकिन आम तौर पर छोटे उद्यमों के पास उनका अभाव है।उन्हें हरित ऊर्जा की ओर उन्मुख करनेके लिए सरकार को ही आगे आना होगा। इस मामले में जितना विलंब होगा, उतना ही दूरगामी नुकसान होता रहेगा। असलमें, जलवायु परिवर्तन से जुड़े उपायों पर खर्च बढ़ाने से किसानों सहित तमाम अंशभागियों को लाभ पहुंचेगा। इसके साथ ही कृषि जैसे क्षेत्र से जुड़ी अवसंरचना और अन्य सहयोगी पहलुओं पर ध्यान देना होगा। इसे समझने के लिए इस वर्षप्याज की कीमतों के रुझान की चर्चा उपयोगी होगी। इस वर्ष प्याज उत्पादन वाले कई प्रमुख इलाकों में वर्षा की वजह से फसल को नुकसान हुआ, लेकिन प्याज के दाम बहुत ज्यादा नहीं बढ़े।ऐसा इसलिए क्योंकि सरकार ने भंडार में संग्रहित प्याज को आपूर्ति के लिए खोल दिया

महंगाई- वैश्विक सुस्ती पर रहेगा फोकस

बजट में सरकार ग्रामीण खपत में होने वाली कमी जैसी चुनौतियां का ध्यान रखेगी

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली: आगामी

वित्त वर्ष 2023-24 के बजट में सरकार मुख्य रूप से महंगाई, वैश्विक सुस्ती, ग्रामीण खपत में होने वाली कमी जैसी चुनौतियां का ध्यान रखेगी। एक फरवरी को पेश होने वाले बजट में आगामी वित्त वर्ष के लिए राजकोषीय घाटे का लक्ष्य जीडीपी का छह प्रतिशत तक रह सकता है। चालू वित्त वर्ष 2022-23 के लिए यह लक्ष्य जीडीपी का 6.4 प्रतिशत है। पूंजीगत खर्च में सरकार पहले की तरह बढ़ोतरी कर सकती है। और नए वित्त वर्ष में पूंजीगत खर्च के मद में 10 लाख करोड़ रुपये तक का आवंटन हो सकता है। चालू वित्त वर्ष में पूंजीगत खर्च के लिए 7.5 लाख करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। आर्थिक विशेषज्ञों के मुताबिक महंगाई नियंत्रित रहने पर ही खपत बढ़ेगी। खासकर ग्रामीण इलाके की खपत पर महंगाई का काफी असर पड़ता है। त्योहारी सीजन के बाद से ग्रामीण खपत में कमी आ रही है जो अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का विषय है। हालांकि पूंजीगत खर्च में बढ़ोतरी से सरकार चालू वित्त वर्ष की तरह ही खपत और रोजगार बढ़ाने की कोशिश करेगी।

इनकम टैक्स में कोई राहत मिलने की उम्मीद नहींबजट 2023

वित्त मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक आगामी बजट 2023 में सरकार की तरफ से इनकम टैक्स में कोई राहत मिलने की उम्मीद नहीं है। जानकारों के मुताबिक आगामी वित्त वर्ष में सरकार की खाद और खाद्य सब्सिडी चालू वित्त वर्ष के मुकाबले कम रहेगी, जिससे सब्सिडी प्रबंधन में मदद मिलेगी। घरेलू उत्पादन की वजह से आगामी वित्त वर्ष में खाद सब्सिडी 1.5 लाख करोड़ रुपये तक रह सकता है जबकि चालू वित्त वर्ष में खाद सब्सिडी 2.3 लाख करोड़ क तक पहुंच गया। खाद्य सब्सिडी भी चालू वित्त वर्ष के 2.7 लाख करोड़ के मुकाबले 2.3 लाख करोड़ तक सकता है। हालांकि मनरेगा के आवंटन में कमी आने की कोई संभावना नहीं है और हो सकता है शहरी रोजगार के लिए भी सरकार आगामी बजट में कोई घोषणा करे।

निर्यात को बढ़ाना सरकार के लिए होगी चुनौती

विश्व व्यापार संगठन के मुताबिक विदेशी व्यापार में वर्ष 2023 में सिर्फ एक प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी जबकि 2022 में यह बढ़ोतरी 3.5 प्रतिशत रही। नए साल में दुनिया के एक तिहाई देशों द्वारा मंदी का अनुमान जाहिर किया जा रहा है। ऐसे में निर्यात को बढ़ाना सरकार के लिए चुनौती होगी। जानकारों का कहना है कि प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव का पूरा असर दिखने में कुछ साल लग सकते हैं। निर्यात से जुड़े मैन्यूफैक्चरिंग में कमी की भरपाई के लिए सरकार को घरेलू स्तर पर शहरी व ग्रामीण दोनों जगहों पर खपत में बढ़ोतरी करने की जरूरत पड़ेगी।

राजकोषीय घाटे का लक्ष्य जीडीपी का छह प्रतिशत तक रह सकता है

10 लाख करोड़ तक बढ़ायाजा सकता है पूंजीगत खर्च