Chaurchan Kab Hai 2024

मिथिला पंचांग के अनुसार चौरचन व्रत 2024 कब है? बिहार के मिथिला पंचांग के अनुसार चौरचन व्रत (chaurchan Date) 06 सितंबर 2024 को है, ।। भाद्रपद मास की शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि प्रारंभ होगी – 06 सितम्बर 2024 को दोपहर 03 बजकर 01 मिनट पर ।। ।। भाद्रपद मास की शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि समाप्त होगी – 07 सितम्बर 2024 को शाम 05 बजकर 37 मिनट पर।।

Chaurchan Kab Hai 2024
Chaurchan puja 2024 images

Chaurchan Kab Hai चौरचन  व्रत 2024

मिथिला पंचांग के अनुसार चौरचन व्रत 2024 कब है?

बिहार के मिथिला पंचांग के अनुसार चौरचन व्रत (chaurchan Date) 06 सितंबर 2024 को है,

।। भाद्रपद मास की शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि प्रारंभ होगी – 06 सितम्बर 2024 को दोपहर 03 बजकर 01 मिनट पर ।।

।। भाद्रपद मास की शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि समाप्त होगी – 07 सितम्बर 2024 को शाम 05 बजकर 37 मिनट पर।।

बिहार के मिथिला प्रांत में चौरचन का त्यौहार को श्रद्धा और आस्था से मनाया जाता है इस दिन को चौक चंदा (CHAUK CHANDA 2024 ) के नाम से भी जाना जाता है।

मिथिला की धरती पर मनये जेन वाले कुछ महतपूर्ण त्योहारों में से एक चौरचन या चौक चंदा का त्यौहार हर साल अपनी पौराणिक विरासत की महत्वा को याद दिलाता है 

CHAURCHAN PUJA 2024 चौरचन 2024

 

बिहार के मिथिला प्रांत की एक विशेष विरासत है चौरचन पूजा का त्यौहार इस त्यौहार को बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है । इस व्रत को चौक चंदा के नाम से भी जाना जाता है ।  यह त्यौहार भादो मास (भाद्रपद मास)  में मनाए जाने वाले मुख्य त्योहारों में से एक है । चौरचन का त्यौहार अपनी एक मुख्य विशेषता रखता है । 

 

तो आइये जानते है क्यों खास है ये व्रत किस दिन रखा जाएगा चौरचन का व्रत,  चौरचन 2024 का महत्व क्या है? 



Festival

Chaurchan Puja 2024

Chaurchan date 2024

06 september 2024

Day

Friday

Region

Mithila region of Bihar, UP

 

चौक चंदा 2024 के व्रत के बारे में यहां जाने सब कुछ

चौरचन पूजा 2024 चौरचन का व्रत मुख्य तौर पर बिहार के मिथिला प्रांत में मनाया जाता है इस व्रत को चौक चंदा के नाम से भी जाना जाता है चौरचन का व्रत हर साल भादो या  भादव मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन रखा जाता है । 

इस बार यह व्रत 06 सितंबर 2024 को रखा जाएगा इस दिन चांद की पूजा का विशेष महत्व है चौरचन की पूजा शाम को चांद के उगने के बाद बड़े ही हर्सोल्लाष के साथ मनाया जाता है । 

इस दिन शाम को चांद उगने के बाद चांद को अर्घ दिया जाता है ऐसी मान्यता है कि इस दिन चांद कुछ ही समय के लिए उगता है ।  इस कारण इसे चौठ चांद भी कहा जाता है इस दिन सुहागिन महिलाएं पूरे दिन व्रत रखकर प्रसाद के लिए अलग-अलग पकवान बनाती है शाम को बनाए गए प्रसाद को अर्पित किया जाता है।  

आइए जानते हैं चौरचन व्रत 2024 की विशेषता क्या है

चौरचन 2024 व्रत मान्यता और विशेषतायें क्या है :-

 चौरचन 2024 बहुत ही ज्यादा उत्साह से मनाया जाता है इस दिन सुहागिन स्त्रियों के लिए  शाम के समय आंगन में रंगोली बनाया जाता है

इस पूजा में गुर की खीर, मिटटी के बर्तन में जमे दही और फलो का विशेष महत्वा है कई तरह के फल भी प्रसाद में चढ़ाए जाते हैं ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से घर में सुख समृद्धि आती है शाम के समय सारा सामान बनाकर बांस की डलिया में सजाकर चंद्रमा को चढ़ाया जाता  है

पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन ही चंद्रमा को कलंक लगा था इस कारण इस दिन चांद को देखने के लिए मना किया  जाता है इस दिन हाथ में कुछ प्रसाद लेकर ही चांद के दर्शन करने को कहा जाता है

इस दिन व्रत करने से घर में सुख शांति आती है और चंद्रमा को अर्घ देने से झूठ के कलंक से मुक्ति मिलती है और धन धान्य का आगमन होता है

चौरचन पूजा की विधि :-

चौरचन पूजा एवं व्रत में विधि का एक विशेष महत्व है यह महत्व मिथिला में मनाए जाने वाले त्यौहारों और संस्कृति की एक विशेष छाप छोड़ता है अतः हम पूजा की विधि आपसे साझा करने जा रहे हैं कुछ जगहों पर इस विधि में अंतर हो सकता है लेकिन ज्यादातर जगहों पर इसी विधि के द्वारा पूजा संपन्न की जाती है 

इस दिन लोग सुबह से लेकर शाम  तक व्रत रखते हैं यह व्रत महिलाएं अपने पुत्रों की लंबी उम्र के लिए रखती  है  और जिससे जीवन में कठिनाइयों का सामना ना करना पड़े

शाम तक व्रत रखने के बाद शाम के समय घर के आंगन को गाय के गोबर से लीपा जाता है  फिर कच्चे चावल को पीसकर रंगोली तैयार की जाती है और इस रंगोली से आंगन को सजाया जाता है

केले के पत्ते में एक गोल चांद बनता है इस त्यौहार में तरह-तरह की मिठाइयां चढ़ाई जाती है जैसे गुर की खीर, मिटटी के बर्तन में जमे दही और फल

चौरचन पूजा में दही का महत्व

 पूजा में दही का एक विशेष महत्व रहता है चौरचन पूजा के दिन मिट्टी के बर्तन में जमाई गए दही का अलग ही महत्व है इस दही को पूजा में सम्मिलित किया जाता है और बांस की बनी हुई डलिया में सजाया जाता है

 

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